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बड़ों का सत्कार: तमिलनाडु लोक-कथा

तमिलनाडु में समुद्र के किनारे एक गांव में नारायण स्वामी रहता था। उसकी पत्नी की बहुत पहले मृत्यु हो गई थी। उसके तीन पुत्र थे। घर में धन-वैभव की कमी नहीं थी पर उसके पुत्र बहुत आलसी थे। वे कोई काम नहीं करना चाहते थे। नारायण को इसकी चिंता रहती थी। उसने सोचा, 'मैं बूढ़ा हो रहा हूं, इनकी मां भी नहीं है। अब मैं बेटों का ब्याह कर दूं। ब्याह के बाद हो सकता है कि इन पर ज़िम्मेदारी आए तो इनका कामकाज में मन लगे।'

उसने तीनों बेटों का ब्याह कर दिया। संयोग की बात है कि उसकी तीनों बहुएं भी झगड़ालू और कामचोर निकलीं। न तो वे घर की साफ- सफ़ाई करतीं, न दरवाज़े के बाहर रंगोली बनातीं, न ही उनका मन खाना बनाने में लगता। बढ़िया सांभर की क्या कहूँ, वे अपने ससुर को समय से दही-भात तक खाने को न देतीं। उनका मन बस सजने-संवरने में लगता। अच्छे कपड़े-गहने पहनना, बालों में गजरा लगाना और पैसों को फ़िजूल ख़र्च करना उनकी आदत थी। नारायण यह देखकर चिंतित रहता। इसी चिंता में वह धीरे-धीरे बीमार रहने लगा। जब तब उसे खांसी आती। वह घर के बाहर बैठा खांसता रहता। तीनों बहुएं उसकी सेवा करने में आनाकानी करतीं। तीनों बहुएं अपने पतियों से कहने लगीं कि इस बूढ़े को घर से बाहर ले जाओ। रातभर खांसता है, हमें नींद नहीं आती।

नारायण के बेटे अपनी पत्नियों के कहने में आ गए। उन्होंने अपने पिता को गांव से दूर एक सुनसान मंदिर मैं पहुंचा दिया। अब घर में जिसके जो जी में आता, वही करता। उनकी देखादेखी गांव के और युवकों ने भी यही किया। धीरे-धीरे गांव में छोटे बच्चे, कुछ नवयुवक और नवयुवतियां ही रह गए। कोई बूढ़ा न बचा। जो बड़े थे, वे भी बड़ा कहलाने को तैयार न थे। गांव में अब दादा-दादी, नाना-नानी कोई नहीं रहा।

कुछ ही दिन बीते थे कि समुद्र में तूफान आया। गांव तक लहरें आ गईं। गांव में कोई बड़ा न था, जो बाढ़ से बचने के उपाय बताता। सबका बहुत नुकसान हुआ। तबाही मच गई, लोग दाने-दाने को तरसने लगे। बच्चों को तरह-तरह के चर्म रोग हो गए। गांव के नवयुवकों को उन जड़ी-बूटियों का पता नहीं था, जिनका लेप ऐसी अवस्था में शरीर पर लगाया जाता था। इधर घर में खाने को कुछ न होने से नारायण के घर की बहुएं रात-दिन एक-दूसरे से लड़ती रहतीं। घर में रोज़ के लड़ाई-झगड़े से तंग आकर तीनों लड़कों ने परदेश जाकर धन कमाने की योजना बनाई।

तीनों भाई तीन दिशाओं में गए। छह महीने के बाद अच्छी कमाई करके वे अपने घर की ओर लौटे। रास्ते में एक गांव पड़ा। वहां के लोग ख़ूब प्रसन्‍न दिखाई दे रहे थे। बूढ़े-बच्चे सब साथ-साथ एक-दूसरे का हाथ पकड़े चल रहे थे। सांभर, इडली, डोसे की सुगंध घर-घर से आ रही थी। संयोग से उसी गांव के बाहर तीनों भाई एक-दूसरे से मिले और बड़े प्रसन्‍न हुए। उन्होंने अपने-अपने अनुभव एक-दूसरे को सुनाए। तब उन्हें लगा कि कमाया हुआ धन बहुत कम है, क्योंकि उनकी पत्नियां इतनी ख़र्चीली हैं कि इसे तो वे गहने-कपड़ों में ही खर्च कर देंगी। खेती-बाड़ी का काम कैसे चलेगा? तब उन्होंने निश्चय किया कि उन्हें अभी और पैसे कमाने चाहिएं। तभी उन्हें ख्याल आया कि अपने कमाए धन का क्या करें। इसे साथ ले जाने से तो अच्छा होता कि कहीं सुरक्षित रख देते। इतने मैं उन्होंने देखा कि थोड़ी दूर पर एक कुएं के पास तीन स्त्रियां पानी भर रही हैं। उन्हें देखकर लगता था कि वे किसी सम्मानित परिवार की हैं। उन्होंने सोचा कि इनसे पूछें कि क्या यह हमारा धन कुछ दिनों के लिए रख लेंगी? अतः वे उनके पास गए और बोले, “बहन, हम आपको जानते तो नहीं क्योंकि हम परदेशी हैं। हमारे पास धन है। क्या आप उसे अमानत के रुप में कुछ दिनों के लिए रख लेंगी? हम सब छह महीने बाद वापस आकर उसे ले लेंगे।”

पहली स्त्री बोली, “हां भाई, रख लूंगी। मेरा नाम क्षमा है। अभी तो हम कुएं पर हैं। हम आपका धन अवश्य सुरक्षित रख देंगे। बस शर्त इतनी है कि आप अपनी अमानत वहां लेने आना, जहां वह मिले, जिसके पेट में दांत हो।"

दूसरी बोली, “भाई, याद रखना मेरा नाम दया है। आप अपनी अमानत वहां लेने आना, जहां वह मिले, जिसके पेट में पानी हो।"

तीसरी ने कहा, “और मैं श्रद्धा हूं। आप अपनी अमानत वहां लेने आना, जहां वह मिले, जिसके पेट में मूंछ हो।”

तीनों भाई इन शर्तों को सुनकर चकराए और पूछ बैठे, “बहनो, आपने ऐसी शर्तें क्‍यों रखीं? इनका क्या अर्थ है?”

वे बोलीं, “शर्त इसलिए रखी है कि इसके बारे में केवल आप लोग ही जानते हैं। हमें विश्वास रहेगा कि अपना धन आप लोग ही लेने आएंगे। जहां तक इनके अर्थ की बात है तो इसका मतलब कोई भी बड़ा-बूढ़ा, अनुभवी व्यक्ति बता देगा।"

तीनों भाइयों ने सोचा, यह बात तो जब हम लौटेंगे तो यहीं किसी गांववाले से पूछ लेंगे। कम से कम यह तो निश्चित है कि हमारा धन सुरक्षित रहेगा। अभी तो धन कमाने चलें। तीनों ख़ुशी-ख़ुशी स्त्रियों के पास धन रखकर चले गए।

छह महीने बीतने पर वे तीनों भाई फिर लौटे और उसी कुएं पर बैठे। लंबी प्रतीक्षा के बाद भी उन स्त्रियों का कुछ पता न चला। अब उन्होंने गांव के लोगों से उनका नाम बताकर पता-ठिकाना पूछा। गांव के एक वृद्ध बोले, “यहां हमारे गांव में, हर घर में रहने वाली स्त्री दया, क्षमा और श्रद्धा का रूप है। सबमें इतनी क्षमा है कि कोई चोर के पकड़े जाने पर भी उसे चोट नहीं पहुंचाता । सबमें इतनी दया है कि कोई भिखारी हमारे यहां से भूखा नहीं लौटता और श्रद्धा तो हमारे गांव की हर स्त्री में है क्योंकि वे सब अपने से बड़ों का आदर करती हैं, उन्हें सम्मान देती हैं। अब तुम बताओ कि तुम लोग किसको ढूंढ़ रहे हो?”

तीनों इस बात को सुनकर हैरान हो गए। तब उन्होंने वे शर्तें दोहराईं जो उन स्त्रियों ने उन्हें बताई थीं। वृद्ध बोला, “यह बात तुम्हें अपने बुजुर्गों से पूछनी चाहिए। मैं इसके बारे में कुछ नहीं बता पाऊंगा।" तीनों भाई उदास होकर अपने घर की ओर चले। चलते-चलते छोटे भाई को याद आया कि संभवत: इन शर्तों का मतलब उनके पिता बता सकें। उसने अपने भाड़यों से कहा, “भाई क्‍यों न अपने पिता के पास चलकर इसका मतलब पूछें।"

बड़ा भाई बोला, “हमने पिता के साथ अच्छा व्यवहार तो किया नहीं है। अब किस मुंह से उनके पास जाएं?”

बीच वाले ने कहा, “भूल किससे नहीं होती। हमें अपने पिता के पास चलने में कैसी शर्म। चलो चलते हैं।"

वे तीनों अपने पिता के पास मंदिर में पहुंचे। वर्षों बाद अपने पुत्रों को देखकर नारायण स्वामी बहुत प्रसन्‍न हुए। लड़कों ने अपने आने का कारण बताया। तीनों शर्तें सुनकर उन्होंने कहा कि यह जानना तो बहुत सरल है। उस गांव में जिस घर में आम, नारियल और अनार के पेड़ हों, वहां जाओ।

“जिसको स्त्री ने पेट में पानी होने की बात कही है, वह नारियल के पेड़ वाले घर में चला जाए।

जिसको पेट में दांत होने की बात कही है, वह अनार के पेड़ वाले घर में चला जाए।

जिसको पेट में मूंछ के लिए कहा है, वह आम के पेड़ वाले घर में चला जाए।”

इतना सुनते ही तीनों भाई पीछे गांव में लौटे और घरों को खोज लिया।

नारियल के पेड़ वाले घर में जब बड़ा भाई पहुंचा तो वहां दया मिली। वह बोली, “हां भाई आपकी अमानत पेड़ के नीचे ज़मीन में सुरक्षित है, पर अभी मैं काम कर रही हूं, खाली नहीं हूं।
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(कुसुमलता सिंह)

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साभारः लोककथाओं से साभार।

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1 Comments

Farhat

25-Nov-2021 03:18 AM

Good

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